जब नानक काबा की तरफ पैर करके सोये
+रमेशराज
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अपने-अपने धर्म और अलग-अलग ईश्वरों
दैव-शक्तियों को लेकर भेद उन्हें ही जान पड़ता है, जो वास्तविकता से परे, अपने अधूरे ज्ञान के बेूते फूले नहीं समाते हैं। सच्चे संत के
लिये मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा अर्थात् समस्त प्रकार के पूजास्थल भेदहीन ही नहीं,
इन सब में एक ही परमात्मा के वास
की अलौकिक अनुभूति करता है।
सिखों के प्रथम गुरु नानक भी उन
पहुंचे हुए संतों में से एक थे, जिन्हें सर्वत्र एक ही ईश्वर की लीला दिखायी देती थी। एक बार
गुरुजी मुसलमानों के पवित्र स्थान मक्का गये। जब रात हुई तो वे काबे के निकट काबे की
तरफ पैर करके
सो गये। एक अन्जान व्यक्ति को काबा की ओर पैर कर सोते हुए देखकर वहां का काजी गुस्से
से भर उठा। वह लाल-पीला होते हुए बोला-‘‘ तू कौन काफिर है जो
खुदा के घर की ओर पैर कर सो रहा है और इस तरह पैर पसार कर सोना खुदा का अपमान है।’’
गुरु नानक बड़े ही सहज और विनम्र
भाव के साथ बोले-‘‘ भइया मुझे क्षमा करना, मैं थका-हारा था मुझे यह पता ही नहीं चला कि यह खुदा का घर है,
अतः अज्ञानतावश खुदा के घर की
ओर पैर करके सो गया।’’
काजी उनकी बात सुनकर और आग बबूला
हो गया। उसने आव देखा न ताव गुरुजी के पैर पकड़े और काबे के विपरीत दिशा में घसीट दिये।
लेकिन जब उसने देखा कि काबे के विपरीत पैर करने के बावजूद काबा उसी ओर दिखायी पड़ रहा
है जिसे ओर नानक जी के पैर हैं तो उसने पुनः गुरु जी के पैरों को विपरीत दिशा में पलट
दिया। इस बार भी काजी यह देखकर हैरत में रह गया कि अब भी पैर उसी दिशा में है जिधर
खुदा का घर है। काजी ने इस क्रिया को कई बार किया और बार-बार देखा कि काबा उसी ओर घूम
जाता है जिसे ओर नानक जी के पैर होते हैं तो वह अचम्भे में आते हुए वहां से मक्का के
मुजाहिर के पास चला गया और मुजाहिर को विस्मय के साथ यह सारी घटना बता दी। फिर क्या
था, जहां
नानक सोये थे, वहां अनेक हाजी इकट्ठे हो गये। वहां के बड़े काजी तुकरुद्दीन,
पीर जलालुद्दीन व बहाउद्दीन ने
गुरुजी से ढेर सारे सवालों की झड़ी लगा दी। उन सवालों के उत्तर गुरुजी बड़ी ही विनम्रता
से एक-एक कर देते रहे। जब सब शंकाहीन और निरुत्तर हो गये तो पीर बहाउद्दीन ने अपने
समस्त धार्मिक साथियों को सम्बोधिात करते हुए कहा, ‘‘ ऐसा फकीर है जो हम सबसे ऊपर है। इसके लिए तो समस्त जहान ही खुदा
का घर है। ये हम सब पीरों का पीर है जिसे खुदा
ने ही हम सबको सच्ची राह दिखाने के लिए भेजा है।’’
पीर बहाउद्दीन के इन बचनों को
सुनकर वहां एकत्रित समस्त हाजी पीर नानक के प्रति भक्तिभाव से भर उठे और उन्हें प्रणाम
करने के बाद क्षमा-याचना करने लगे। गुरु जी ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा-‘‘
गुनाहों और बुरे कामों से तौबा
कर, समस्त
जगत को समान भाव से देखने वाला और जगत का कल्याण करने वाला ही ईश्वर का सच्चा भक्त
होता है। ईश्वर और अल्लाह एक ही हैं।’’
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